एक गढ़ हारे, दो को बचाने की चुनौती क्या पास हो पाएंगे अखिलेश ?

एक गढ़ हारे, दो को बचाने की चुनौती; पिता मुलायम के जाने के बाद पहली अग्निपरीक्षा में कितने सफल होंगे अखिलेश यादव ?

इसमें भी सबसे अहम सवाल यह उठ रहा है कि क्या आजमगढ़ की लोकसभा सीट के रूप में समाजवादी पार्टी का एक मजबूत गढ़ गंवाने के बाद अखिलेश यादव, मैनपुरी और रामपुर के किले की हिफाजत कर पाएंगे?

एक गढ़ हारे, दो को बचाने की चुनौती; पिता मुलायम के जाने के बाद पहली अग्निपरीक्षा में कितने सफल होंगे अखिलेश यादव ?
उत्तर प्रदेश में मैनपुरी और रामपुर में उपचुनाव होना है। मैनपुरी की लोकसभा सीट मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई है। वहीं दूसरी तरफ रामपुर की विधानसभा सीट पर आजम खान की सदस्यता जाने के बाद उपचुनाव के हालात बने हैं। यह उपचुनाव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं। पिता के निधन के बाद पहली बार अखिलेश किसी चुनावी मोर्चे पर उतरेंगे। ऐसे में उनके सामने कई अहम सवाल रहेंगे? इसमें भी सबसे अहम सवाल यह है कि क्या आजमगढ़ की लोकसभा सीट के रूप में सपा का एक गढ़ गंवाने के बाद अखिलेश, मैनपुरी और रामपुर के किले की हिफाजत कर पाएंगे?
आजमगढ़ लोस उपचुनाव में मिली थी मात
बता दें कि आजमगढ़ के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार दिनेशलाल यादव निरहुआ ने सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र सिंह को शिकस्त दी थी। गौरतलब है कि आजमगढ़ जिला सपा के लिए सबसे सुरक्षित इलाका माना जाता है। बीते विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में आई हो, लेकिन आजमगढ़ में उसकी दाल नहीं सकी थी। यहां पर समाजवादी पार्टी ने सभी दस सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, लोकसभा चुनाव आते-आते बाजी पटल गई और दिनेश लाल यादव निरहुआ भाजपा के टिकट पर यहां से सांसद बने। कहा तो यह भी जाता है कि सपा अपने इस गढ़ में अखिलेश यादव के ओवरकांफिडेंस के चलते हार गई थी। एक तरफ जहां भाजपा ने अपने तमाम दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतार दिया था, अखिलेश यहां प्रचार करने तक नहीं गए थे। यह भी दिलचस्प है कि आजमगढ़ की सीट अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद ही खाली हुई थी। 
निजी रूप से भी काफी अहम है मैनपुरी
आजमगढ़ के रूप में एक सुरक्षित ‘गढ़’ को गंवाने के बाद अब अखिलेश के सामने मैनपुरी और रामपुर के रूप में दो बड़ी चुनौतियां हैं। यह दोनों ही सीटें सपा के लिए बहुत ही ज्यादा मायने रखती हैं। एक तरफ मैनपुरी उनके पिता के निधन के बाद खाली हुई है। इस सीट पर हार-जीत अखिलेश के लिए निजी रूप से भी बहुत मायने रखती है। मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव फतह करके वह ‘नेताजी’ को एक सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहेंगे। शायद यही वजह है कि यहां पर उम्मीदवार चुनने में वह पूरी सावधानी बरत रहे हैं। दावा तो यहां तक जा रहा है कि यहां पर सपा के सटीक उम्मीदवार के लिए अखिलेश अपने चाचा शिवपाल का ‘आशीर्वाद’ लेने से भी नहीं चूकेंगे।
रामपुर में भी बहुत कुछ दांव पर
आजमगढ़ और मैनपुरी की ही तरह रामपुर भी समाजवादी पार्टी के लिए काफी अहम है। गौरतलब है कि आजम खान इस सीट पर लगातार जीतते रहे हैं। वह 1985, 1989, 1991, 1993, 2002, 2007, 2012, 2017 और 2022 में लगातार 10 चुनाव यहां से जीते हैं। साल 2019 में जब वह लोकसभा पहुंचे तो रामपुर से अपनी पत्नी को लड़ाया था और उन्हें भी जीत मिली थी। लेकिन रामपुर में लोकसभा उपचुनाव में यहां से सपा को भाजपा के हाथों शिकस्त मिली थी। तब सपा ने यहां पर आजम की पसंद आसिम रजा को टिकट दिया था और भाजपा उम्मीदवार घनश्याम लोधी ने उन्हें 42 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। ऐसे में सपा अपनी इस मजबूत सीट पर एक ऐसा उम्मीदवार खड़ा करना चाहेगी जो यहां उसकी मजबूती कायम रखे। जानकारों के मुताबिक इस बार भी सपा आजम की पसंद से प्रत्याशी चुनेगी। ऐसे में आजम भी यहां से एक मजबूत और जिताऊ कैंडिडेट चुनकर मुलायम को अपनी आखिरी श्रद्धांजिल देना चाहेंगे।

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